नागौर। गौरेया की लुप्त होती प्रजाति को देखकर नागौर जिले के ललित आचार्य का हृदय इतना द्रवित हुआ कि उन्होंने गौरेया की सेवा के लिए जीवन समर्पित कर दिया। बासठ वर्षीय ललित आचार्य सेवानिवृत्त है। ललित आचार्य ने बताया कि बचपन में घर, आँगन, बाग-बगीचे, सड़क किनारे पेड़ों पर और चौपाल में पीपल और बरगद पर हजारों गौरेया दिखती थी। परन्तु अब ये ढूँढने पर भी नहीं मिलती। इनकी चहचहाट का मधुर संगीत नहीं सुनाई देता। पिछले माह से ही उन्होंने इस पक्षी को संरक्षित करने की ठानी। वे गौरेया को बचाने के लिए घर पर ही घरौंदे तैयार कर रहे हैं। वे न तो कारीगर है न ही इसका कोई अनुभव परन्तु लकड़ी काटने की मशीन लाकर इस कार्य में लग गए। प्रारम्भ में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। समय अधिक लगता था, घोसले बनते बनते बिगड़ जाते थे। परन्तु निरंतर प्रयासों से अब सरलता से कुछ ही समय में घोसला तैयार कर लेते है। एक माह में उन्होंने पाँच सौ घरोंदे तैयार किये है। शहर के प्रत्येक क्षेत्र में इन घरोंदों को लगायेंगे एवं एनी लोगों में बांटकर उन्हें भी लगाने के लिए प्रेरित करेंगे ।