धान का कटोरा कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल में सदा से ही धान की खेती ज्यादा होती रही है, लेकिन उसकी वजह से मिट्टी की गुणवत्ता को बहुत नुकसान पहुंचा है। पिछले तीन सालों से ग्राम विकास समूह की मदद के बाद लगभग 7000 किसानों ने इस समस्या से खुद को दूर किया है।
अब किसान धान से उठकर फलों की ओर बढ़ रहे हैं जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता भी बढ़ रही है। आज के युग में ये तकनीक एक बेहतर उपाय के रूप में देखी जा सकती है। ये समूह न सिर्फ किसानों को अच्छे पौधे मुहैया करवा रहा है बल्कि आर्थिक रूप से भी उनकी मदद कर रहा है।
इस योजना के अंतर्गत लगाए गए पेड़ों की जीवन क्षमता दर बहुत अधिक है क्योंकि किसान आर्थिक लाभार्थी होने के साथ ही पौधों के संरक्षक भी हैं। किसानों में यह योजना लोकप्रिय होने से गाँवों में फलदार पेड़ों के छोटे-छोटे उपवन बन गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। इसके साथ ही भूमिगत जल का पुनर्भरण क्षमता भी बढ़ी है। उपवनों में सभी प्रकार के जीवों के प्रजनन से जैव विविधता का समग्र विकास हुआ है।
किसान अपनी सफलता का श्रेय ग्राम विकास समूह के अनूठे मॉडल को देते हैं जिसमें वे किसानों को वित्तीय सहायता और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान कर रहे हैं। वे सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले वृक्षारोपण की भी व्यवस्था कर रहे हैं।
2019 से अब तक ग्राम विकास समूह ने पश्चिम बंगाल के 750 गांवों के 7000 किसानों के खेतों में 2,50,000 से अधिक फलों के पेड़ लगाए हैं ।
नमन है किसानों के अथक प्रयासों को जिन्होंने नई तकनीकों के इस्तेमाल को अपना कर अपनी खेती दोगुनी की । हमें जरूरत है ऐसी कई तकनीकों की जो किसानों की आंखों से उनके आंसुओं को अलग कर सकें।
