कृष्ण गोपाल वैष्णव
4. जीव संरक्षण
हमारी संस्कृति में प्रत्येक जीव के हित और संरक्षण की बात की जा जाती है। सभी घरों से गाय कुत्ते की रोटी, चींटियों के लिए दाना, पक्षियों के चुग्गा, घरों के बाहर पशुओं के पीने के पानी की खेलियों का निर्माण आदि हमारी परंपरा का अभिन्न अंग रहे हैं। संपूर्ण प्राणी जगत का अस्तित्व, एक दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर है। मनुष्य जाति ने प्रकृति के अन्य प्राणियों के आवास छीन लिए, दुनिया से जीवों की अनेकों प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं और कई लुप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए जीव संरक्षण को प्रकृति की आधारभूत आवश्यकता मानते हुए इस कार्य को करना चाहिए।
पेड़ों के स्थान पर सीमेंट और कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। निरन्तर वनों के ह्रास, कम होती हरियाली ने पक्षियों को बेघर कर दिया है। पक्षियों को दूर दूर तक छाया और दाना-पानी नही मिलता। मोबाइल टॉवर के कारण गौरेया लुप्त होने लगी है। इसके लिये हम अपने घरों में, अपनी गली और पार्क में लगे पेड़ों पर चुग्गाघर एवं परिंडे लगाकर इनको बचाने का प्रयास कर सकते हैं।
गलियों में विचरण करने वाले पशुओं के लिए पीने के पानी के लिए घर के बाहर व्यवस्था कर सकते हैं।
कुत्तों व अन्य पशुओं के लिए आवास की व्यवस्था करके हम इस कार्य का प्रारंभ कर सकते हैं।
हमारे द्वारा फेंकी गई पॉलिथीन खाकर हजारों पशु काल के गाल में समा जाते हैं। पॉलीथिन को घर से बाहर न फेंक कर भी हम जीव रक्षा कर सकते हैं।
निंरतर…….