कृष्ण गोपाल वैष्णव
2 जमीन संरक्षण
“माता भूमिः पुत्रौ अहम् पृथिव्या:” वेदों में भूमि को माता कहा गया है। भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई है। एक स्थिर इकाई होने के नाते इसमें किसी भी प्रकार वृद्धि नहीं की जा सकती। वनस्पति एवं अनाज की जननी भूमि है जिससे सम्पूर्ण प्राणी जगत का चक्र सक्रीय है। भूमि में पाए जाने वाले तत्वों में से किसी एक का भी असंतुलित होना भूमि प्रदुषण है। दूषित भूमि फसलों एवं जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
ठोस कचरा प्रायः घरों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। जनसँख्या वृद्धि के साथ अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा में वृद्धि हुई है। उचित निस्तारण के अभाव में महानगरों में कचरे के पर्वत खड़े हो गए। समुद्र में कचरे के विशाल भंवर बन गए है। इस ठोस कचरे में राख, कांच, ‘फल तथा सब्जियों के छिलके, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, ईट, रेत, धातुएं, मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि वस्तुएं सम्मिलित हैं। इस कचरे को रोकने के लिए हमें स्वयं भी प्रयास करना होगा तथा अपने आस-पास लोगों को भी जागरुक करने की आवश्यकता है। हमे अपने घर के लिए जीरो वेस्ट मॉडल को अपनाना होगा।
हमारे घर से कम से कम कचरा निकले इसके लिए सर्वप्रथम हमें पॉलिथीन के स्थान पर कपडे की थैली का प्रयोग करना चाहिए। पॉलिथीन के कारण जल तथा भूमि के साथ जीवों को भी परोक्ष-अपरोक्ष रूप से हानि हो रही है। सिंगल यूज पॉलीथिन का प्रयोग निषेध करना चाहिए। जो पॉलीथीन अनिवार्य रूप से घर में आ गया है वो उसी रूप में बाहर न जाये। इसके लिए हम इस पॉलिथीन का प्रयोग इको ब्रिक बनाने में कर सकते हैं। प्लास्टिक की बोतल में पॉलिथीन को ठूंस कर भर देने से 300-350 ग्राम के लगभग ईट के जैसा उत्पाद तैयार हो जाता है। इसका प्रयोग हम पौधों की क्यारी बनाने या स्टूल कुर्सी बनाने में कर सकते हैं।
घर के अन्य कचरे को विभाजित करके बेचने योग्य कचरे को बेच देना चाहिए। रसोई के गीले कचरे को भी फेंकने के स्थान पर खाद बना कर उपयोग में ले सकते हैं। इस तरह के कुछ प्रयास हमारे घर से अपशिष्ट की मात्रा को एकदम न्यूनतम कर देंगे।
निरन्तर……