शंकरण मोसाद और उनके परिवार ने एक प्लास्टिक मुक्त जीवन का निर्माण किया:
हमने अपने जीवन में हमेशा एक आदर्श दुनिया की कल्पना की है, फिर वो चाहे प्लास्टिक मुक्त वातावरण ही क्यों न हो। पर क्या यह बातें हम सचमुच अपने जीवन में अपनाते हैं? अमूमन नहीं!
केरल के शंकरण मोसाद अपने आप में एक उदहारण हैं, क्योंकि इन्होंने अपने आस -पास एक प्लास्टिक मुक्त वातावरण का निर्माण किया है। एक सरकारी नौकर होने के नाते, सरकारी योजनाएं जैसे की ‘हरित घर’ से जुड़ने के अवसर उन्हें मिलते रहे हैं। पर उन्होंने न सिर्फ अपने आप को इन योजनाओं का भाग समझा बल्कि उसे आगे बढ़ाने का कार्य भी किया। अपने कार्य स्थल से शुरुआत करते हुए उन्होंने अपने साथियों को प्लास्टिक की जगह स्टील की बोतलें भेट की। धीरे-धीरे प्लास्टिक की जगह स्टील लेता गया और उनका ऑफिस प्लास्टिक मुक्त हो गया। हालांकि इस काम में उन्हें कई अड़चनों का सामना करना पड़ा, मगर जहां चाह वहां राह के सिद्धांत पर अमल करते हुए, कब सबकुछ आसान हो गया पता ही नही चला। एक आदमी की सोच क्या नही कर सकती, शंकरण जी अपने आप में इसके जीते जागते उदाहरण हैं।
हालांकि उनका सफर यही नहीं रुका ऑफिस से उन्होंने ये सीख अपने घर पर भी इस्तेमाल की, जैसे की किचन से सारे प्लास्टिक के डब्बों को हटाना, साथ ही साथ थोक विक्रेताओं से सामान खरीदना जिसमे कम से कम प्लास्टिक पैकेजिंग का इस्तेमाल हो।
घर से बाहर निकल कर दूसरों को सीख देने से पहले अपनी पत्नी को उन्होंने पर्यावरण प्रेमी बनाया, उनकी पत्नी जो की पहले से ही कला में रुचि रखती थी, उन्हें एक नई दिशा प्रदान की। जिसके बाद उनकी पत्नी ने और औरतों को नई दिशा प्रदान की और वो सब पर्यावरण के कार्य में लग गए। जैसे की कपड़े का बैग बनाना, पेपर का पेन बनाना और भी बहुत कुछ। अब प्लास्टिक मुक्त वातावरण की एक मानव चेन निर्मित हो रही थी, केरल के एक छोटे से गांव के एक छोटे से ऑफिस से शुरू होने वाला किस्सा दिन ब दिन नए आयाम हासिल कर रहा था। इन सब का श्रेय शंकरण जी के अथक प्रयासों को जाता है।
किसी ने सच ही कहा है, आसमान की उड़ान एक नन्हे कदम से शुरू होती है सफलता की कहानी l
