जल संरक्षण का मिसाल बना गांव सोनपुरगढ़, खूँटी जिला झारखंड प्रान्त
प्राकृतिक सुंदरता का नाम है झारखंड। यहाँ अंग्रेजों के समय से ही वनों की कटाई की प्रारम्भ हुई। जिससे वनों के विनाश के साथ पानी का स्तर भी बहुत कम हो गया। यहां गांव के लोग खेती- किसानी और वनों के ऊपर ही आश्रित थे। लेकिन जल की कमी के कारण वर्षा जल से केवल धान की खेती पर आश्रित हो गए । झारखंड पर्यावरण गतिविधि के पेड़ उपक्रम के प्रांत टोली के सदस्य श्री सुनील कुमार शर्मा खूंटी जिला के सोनपुरगढ़ गांव में काम करते हैं।
गांव में जल संकट को देखते हुए सुनील जी ने वहां के ग्रामीणों से बातचीत कर जल संरक्षण के लिए जागरूक करने को ठानी। वर्ष 2020 में उन्होंने ग्रामीणों को बैठक कर विकास करने की योजना बताई। सुनील जी ने गांव के लोगों के साथ मिलकर सरकार के विभिन्न विभागों से संपर्क कर इस गांव को विकसित गांव बनाने की योजना पदाधिकारियों को बताया गया। समाज के सहयोग के साथ ही जल संरक्षण से सम्बंधित योजनाओं को धरातल पर लागू करने के लिए झारखंड वन विभाग का सहयोग लिया गया। देखते ही देखते गांव के सामूहिक पहल से एक समृद्ध गांव बनकर आज पूरे झारखंड में एक उदाहरण बन गया है ।
ग्रामीणों से संवाद स्थापित कर जल ,मिट्टी और जंगल का जीवन के साथ जुड़ाव की बात बताई गई। ‘पर्यावरण प्रबंधन ‘करने का गरीबी से क्या संबंध है, पर समझ बनाई की गई। लोगों को ग्राम स्तर पर संगठित कर सामूहिक निर्णय के साथ कार्य का चयन एवं निष्पादन किया गया।
गांव को पूर्ण रूप से वर्षा जल बहाव मुक्त करने का निर्णय लेकर कार्य किया गया । कार्य का आरंभ गांव के सबसे ऊंचे भाग से आरंभ किया गया। वर्तमान में मिलीया डूबिया प्लाट से, जहां “जब से धरती तब से परती” वाली स्थिति थी, कार्य आरंभ किया गया। वर्षा जल संरक्षण हेतु ढलान वाले भूमि पर टीसीबी (ट्रेंच कम बंड), समतल भूमि पर फील्ड बंड एवं दोन में फार्म ब॔ड का निर्माण कर वर्षा जल को वर्षा स्थान पर ही रोकने का कार्य किया गया। कुल 250 हेक्टेयर क्षेत्र में वर्षा जल संरक्षित कर 250 करोड़ लीटर वर्षा जल वार्षिक का संरक्षण कर गांव के भूमि को रिचार्ज किया गया। यह आंकड़ा प्रतिवर्ष लगभग 1200 एमएम वर्षा का आंकड़ा पर आधारित है ।
जल संरक्षण के कार्य से पानी का बहाव रुका एवं भूमिगत जल संभरण के कार्य के कारण जल स्तर में वृद्धि हुई । कुआं में जल मापन एवं ग्रामीणों के कथन के अनुसार 3 फीट जल स्तर में बढ़ोतरी आंका गया।
ग्रामीणों द्वारा अपने आजीविका को बढ़ाने एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए फलदार वृक्षारोपण की योजना बनी । मनरेगा द्वारा वृक्षारोपण करने से लोगों को कोविड महामारी के समय भी रोजगार उपलब्ध हो पाया।
गांव के लोगों ने रसायन मुक्त खेती का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री टपक सिंचाई योजना का अभिसरण कर 15 लाभुकों को कम पानी में ज्यादा खेती का कार्य किया गया । इससे लोगो को वैज्ञानिक खेती की सीख मिली।
गांव पूर्णत: बाहर शौच से मुक्त किया गया है। सभी लोग शौचालय का उपयोग करते हैं ।
गांव के सभी घरों में कंपोस्ट पिट या वर्मी बेड में केंचुआ खाद बनाया जाता है ।
गांव प्लास्टिक मुक्त है ।यहां प्लास्टिक रेपर आदि को पानी के बोतलों में भरकर ‘इको ब्रिक्स ‘का निर्माण किया जाता है। गांव में जगह-जगह कूड़ेदान का उपयोग स्वयं निर्माण कर स्वच्छता सुनिश्चित किया गया है ।
