कृष्ण गोपाल वैष्णव, जोधपुर।
इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु की थी। इसे वर्ष 1972 में 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद आरंभ किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है “केवल एक पृथ्वी”। बाल्यावस्था से हम पर्यावरण की एक सरल परिभाषा पढ़ते आये हैं कि हम चारों ओर जिस आवरण से आवृत्त है वह पर्यावरण है। पर्यावरण के मुख्य घटक पंचमहाभूत पृथ्वी, वायु, जल, आकाश तथा सूर्य है। ये पंचमहाभूत अथवा इनसे निर्मित प्रत्येक तत्व प्रकृति का अभिन्न अंग है।
इस सृष्टि में उपस्थित प्रकृति के सभी घटक मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पति आदि एक दुसरे के पूरक है। किसी भी कड़ी के लुप्त होने पर सम्पूर्ण जैव विविधता असंतुलित हो जाएगी। हम सभी का कर्तव्य है कि हम हमारे जीवनचक्र के आधार इन पंचमहाभूत तत्वों तथा इससे जुड़े प्रत्येक घटक का संरक्षण करें और उसे जीवन के अनुकूल बनायें। पर्यावरण से जुडी समस्याएँ कुछ दशक पूर्व केवल वैज्ञानिकों के शोध का विषय थी परन्तु वर्तमान में प्रत्येक जन को जागरूक होने की आवश्यकता है। विश्व पर्यावरण दिवस से तात्पर्य केवल वृक्षारोपण करना नहीं है, अपितु भूमि, वन, जल, वायु, ऊर्जा तथा जीव संरक्षण भी है। वनों के ह्रास से घने जंगल समाप्त होते जा रहे है। औद्योगिकीरण से नदियाँ प्रदूषित हो चुकी है। आधुनिकीकरण से वायु प्रदूषित हो चुकी है। वैश्विक ताप की स्थिति में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं परन्तु स्वयं के योगदान को उपेक्षित कर जाते है।
शुभ कार्य का प्रारम्भ स्वयं से होना चाहिए। पीपल, वट, नीम, बिल्वपत्र आदि अधिक ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों को अनुपयोगी भूमि पर अधिक से अधिक लगाने चाहिए। इससे न केवल वायु शुद्धि होगी अपितु मिटटी की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होगी। घर में कम से कम पांच पौधे अवश्य लगाने चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर जल संरक्षण के प्रयास करने चाहिए। घरेलू जल का संरक्षण तथा वर्षा जल संरक्षण के प्रयास हमें अनिवार्य रूप से अपने घरों में करना चाहिए। प्रकृति के साथ ही हमें आस-पास जीवों की चिंता भी करनी चाहिए। घर तथा सार्वजानिक स्थानों पर वृक्षों पर पक्षियों के लिए चुग्गाघर तथा परिंडा लगाना चाहिए। गली में पशुओं के पीने के पानी के लिए खेळी लगानी चाहिए। पॉलीथिन एक जहर के रूप में पर्यावरण पर कहर बन कर टूट पड़ी है। नवीन शोध में मनुष्य के रक्त में माइक्रो प्लास्टिक के कण पाए गए है। हमें प्लास्टिक/ पॉलीथिन का उपयोग न्यूनतम करना चाहिए। एकल प्रयोग प्लास्टिक वस्तुओं का हमें अपने जीवन में निषेध करना चाहिए। रसोईघर से निकलने वाले कचरे से खाद बनाकर उपयोग में ली जा सकती है। हम सभी को प्रयास करना चाहिए कि हमारा घर जीरो वेस्ट मॉडल के रूप में एक पर्यावरण अनुकूल घर हो।