चित्रकूट के श्री कामदगिरी प्रदक्षिणा प्रमुख द्वार ट्रस्ट के अधिकारी एवं पर्यावरण बचाओ अभियान के संस्थापक संत डॉक्टर मदन गोपाल दास ने चित्रकूट के पर्वतों पर भ्रमण करके प्रकृति को समीप से जानने का प्रयास किया है। भ्रमण काल में उनकी शोध विषयक दृष्टि ने प्राकृतिक तत्वों का गहन अध्ययन किया। इन्होने पर्यावरण की अनिवार्यता को समझा और अपने जीवन में उतारा। ये जहाँ भी जाते है स्वयं भी वृक्षारोपण करते है तथा उपस्थित जन समूह से भी वृक्षारोपण करवाते है। प्रत्येक गाँव में अपने प्रवचनों में पर्यावरण विषय को ही समाहित करते हुए कहते है कि “अगर प्रकृति रहेगी तो मैं रहूँगा। मेरी प्रकृति ही नहीं रहेगी तो हम में से किसी का अस्तित्व नही रहेगा। हम स्वयं को प्राकृतिक संसाधनों से जितना दूर करेंगे उतना ही हम रोगी होते जायेंगे। ग्रामीण जनजीवन को संसाधनों की ओर दौड़ते हुए शहरों की ओर पलायन नहीं करना चाहिए। हमें हमारे गाँव में प्रकृति के साथ ही रहना है। वृक्ष हमारा जीवन है। जो वृक्ष पहले से है उन्हें काटना नहीं है और अधिक से अधिक नए वृक्ष लगाने है।”
संत महाराज का विशेष आग्रह रहता है कि मुझे दान के रूप में धन अथवा बहुमूल्य वस्तुओं के स्थान पर अमूल्य पौधा दान दे दीजिये। प्रकृति के पंचतत्वों के महत्व की जानकारी देते हुए इनके संरक्षण का सन्देश देते है। प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाले पॉलीथीन के निस्तारण के लिए इकोब्रिक वैकल्पिक समाधान है। लोगों में जागरूकता फैले इसके लिए सभी से आग्रह करते है कि पॉलीथीन का कम से कम प्रयोग हो तथा प्रयोग की गयी पॉलीथीन को कचरे में न फेंकी जाए। उस पॉलीथीन से इकोब्रिक बनाकर विभिन्न प्रकार से उपयोग में ली जाये। इनका सम्पूर्ण जीवन पर्यावरण संरक्षण के प्रति संकल्पबद्ध है।
