डॉ खेताराम ने अपनी अनोखी तकनीक से बंजर धरती को किया हरा भरा-सुखी जमीन को उपजाऊ बना देता है, जो पसीना जमीन पर बहा कर जोजोबा उगा देता है

जलवायु परिवर्तन के सामने जल आपूर्ति तेजी से अनिश्चित होती जा रही है। बहुत सारी ऐसी जगह है जहां पर जल की समाप्ति की वजह से उन स्थानों को शुष्क स्थान घोषित कर दिया गया है। ऐसी जगहों में बागवानी और खेती करना बेहद मुश्किल है। इन मुश्किलों को पार करते हुए राजस्थान के सीकर जिले के दाता गांव के रहने वाले डॉ खेताराम ने अपने अथक प्रयासों से इसे संभव बना दिया है। रसायन शास्त्र से पीएचडी कर चुके डॉ खेताराम भारत सरकार के प्राकृतिक गैस कारपोरेशन पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने रेत वाली भूमि में भी जल अग्रहण करने की एक नए प्रयोग को जन्म दिया है। खेताराम ने सबसे पहले बालू वाले तीनों की ढलान को एक तरफबनाकर, खेत के निचले भाग में 15, 00,000 लीटर क्षमता वाले एक कच्चे फार्म पॉन्ड का निर्माण किया है। जिसमें 500 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक की सीट भी बिछा दी है। राजस्थान में वर्षा होने पर जल बहकर फॉर्म पौंड में नहीं आता है इसलिए जल संग्रहण हेतु फॉर्म पौंड के आसपास प्लास्टिक की सीट बिछाए जाने की योजना बनाई गई है। इसकी जमीन पर प्लास्टिक शीट बिछाने से आय कम नहीं हो, इसके लिए जोजोबा पौधारोपण किया गया। इस काम में काफी हद तक सफलता भी पाई गई है।

2017 के बाद से इस युवती के जरिए प्रत्येक मानसून में फार्म पौंड पूरी तरह से भर जाता है। इस वर्षा जल का उपयोग ऊर्जा संरक्षण की दृष्टि से भी वह करते हैं। सिंचाई की एक विधि से 10000 वर्ग मीटर में जोजोबा का एक बगीचा बनाया है। इसके साथ ही शिमला मिर्च, खीरा जैसी सब्जियों को जैविक विधि से ग्रीन हाउस में लगाया जाता है। आपको बता दें कि जोजोबा एक औषधीय पौधा होता है। जो कम पानी में भी बड़ा हो जाता है। इसके बीजों से अत्याधिक चिकनाई वाला तेल प्राप्त होता है। रेतीले स्थानों पर जोजवा के बीज और सब्जियों की पैदावार से केवल 12,00,000 वर्ग मीटर में लगभग 8 से 10 लाख की वार्षिक आमदनी होती है। इसके अलावा एक रेतीले स्थान पर हरा भरा देखकर मन खिल जाता है। केवल इतना ही काम नहीं इसके अलावा खेताराम
ऊर्जा संरक्षण के लिए सौर ऊर्जा और गोबर गैस का भी उपयोग करते हैं।

पिछले 5 वर्षों से इस काम में लगे डॉ खेतराम शुष्क भूमि के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित नए प्रयोग करके किसानों के लिए एक प्रेरणा के रूप में सामने आए हैं। अपने आसपास के क्षेत्रों के लगभग 500 किसानों को उन्होंने कृषि कार्य के लिए प्रेरणा दी है। उनकी प्रेरणा से 250 किसानों ने फार्म पॉन्ड बनाकर कृषि कार्य प्रारंभ कर दिया है। वेद के एक पाठ ‘ईशाना वाराणां क्षतन्तीश्चर्षिनाम् का अपो याचामी भेषजम्’ के अनुसार जो इसे महत्व देता है। खेतों में जल की दिव्यता निवास करती है और उसे पोषण देती है। यदि हमें सूखे की समस्या से निजात पाना है तो इस तरीके के काम करने होंगे।

 

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