वापीकूप तड़ागानि उद्यानों उद्यानों पवनानि च।
पुनः संस्कारकर्ता च लभते मौलिक फलम्।
अर्थात बावड़ी, कुओं, तालाबों तथा वनों एवं उपवनों का पुनः संस्कार (जीर्णोद्धार) करवाने वाला मूल निर्माणकर्ता के समान फल को प्राप्त कर्ता है। वृहस्पति स्मृति में नवीन तालाब का निर्माण अथवा जीर्णोद्धार करने वाले के लिए सुख और उद्धार की कामना करते हुए कहा गया है कि जो नवीन तालाब का निर्माण करवाता है अथवा पुराने का जीर्णोद्धार करवाता है वह अपने सारे कुल का उद्धार करके स्वर्ग लोक में महानता को प्राप्त कर्ता है। स्मृति ग्रंथों में एक विशिष्ट बात है कि जल अथवा जल स्रोतों को हानि पहुँचाने पर दंड निश्चित किया गया है। सैकड़ों वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने पंचतत्वों में मान्यता देते हुए लिखा था –
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
प्रकृति के सभी तत्वों में जल का महत्व कुछ अधिक है क्योंकि प्रकृति का प्रत्येक तत्व जल से निर्मित है। यह सर्वोच्च औषधि है। यह रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, रूपहीन, पारदर्शी तत्व है जो अलौकिक गुणों से परिपूर्ण है। पृथ्वी पर जल का अकूत भंडार है। इसका रूप परिवर्तित होता है। न इसका विनाश किया जा सकता है और न ही निर्मित किया जा सकता है। हमारी संस्कृति ने प्रारम्भ से जल को सर्वश्रेष्ठ माना है जिसका उदहारण है भारतीय समाज का पवित्र नदियों के किनारे जीवंत उत्सव “महाकुम्भ”
वेद, पुराण, स्मृतियाँ एवं अन्य शास्त्रों में जल महिमा का गुणगान हुआ है उस जल का महत्व मनुष्य समझ नही पाया। कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध होगा तो जल के लिए होगा. आज विश्व जल दिवस है। इस वर्ष जल दिवस की थीम है “अदृश्य भूजल को दृश्य बनाना”। यह थीम रखना अत्यावश्यक भी हो गया क्योंकि धरती के गर्भ की सतह तक जाकर हमने पानी सोख लिया। आज आवश्यकता है कि हम केवल भूजल स्तर ही नही सतही जल एवं जल प्रबंधन की बात करें। प्रत्येक मनुष्य अपने स्तर का प्रयास कर सकता है। घरेलू जल संरक्षण से जल प्रबंधन, वर्षा जल संरक्षण से भूजल स्तर में वृद्धि तथा पारम्परिक जल स्रोत संरक्षण से सतही जल की सुरक्षा कर सकते है।
घरेलू जल संरक्षण के लिए हमें अपनी दैनिक आदतों में परिवर्तन करना होगा यथा – सब्जियां, दाल-चावल धोने वाला पानी का उपयोग पौधों में, लीकेज नल को ठीक करवाना, एक बाल्टी पानी से नहाना, छत पर पानी की टंकी को ओवरफ्लो होने से बचने के लिए अलार्म लगाना, AC/RO के पानी का पुनर्प्रयोग, नालों में एरियेटर का प्रयोग, पीने के लिए आवश्यकतानुसार पानी लेना आदि।
वर्षा जल संरक्षण के लिए घर, कार्यालय, सार्वजानिक स्थल आदि पर छत के पानी को एकत्र करने की व्यवस्था करना। उद्यानों एवं खाली पड़ी भूमि पर कोने में वर्षा जल एकत्रीकरण के लिए खड्डा बनाना ताकि भूजल स्तर में वृद्धि की जा सके।
पारंपरिक जल स्रोतों के लिए समय-समय पर स्वच्छता एवं सौन्दर्यीकरण के कार्यक्रम आयोजित करना। जो जल स्रोत नष्टप्रायः हो चुके है उन्हें पुनर्जीवित करना।
ये सभी प्रयास हमें समाज के साथ मिलकर करने होंगे वरना हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या देंगे ये हमारे लिए सोचनीय विषय है।
जल जीवन अनमोल है, सृष्टि का परिधान।
अमृतमय हर बूँद है, श्रेष्ठ प्रकृति वरदान।
जल अनमोल
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