“मैं ही क्यों करूं या मुझे परवाह नहीं है” किसी भी समस्या पर सबसे आसान टिप्पणियों में से एक है जिसे सरकारी अमले के लिए छोड़ दिया गया है। चाहे सड़क जाम हो, वायर स्ट्रेचिंग हो, सीवर लाइन हो या ऐसी कोई भी समस्या जिसमें सरकार शामिल हो। हम भारत में समस्याओं की अनदेखी करने की एक सामान्य प्रवृत्ति है।
मिलिए उत्तर प्रदेश के देवरिया के उन लोगों से जिन्होंने अपने दम पर जंगल और जंगल की लकड़ी के दुरुपयोग को प्रतिबंधित किया है। उनके समर्पण ने एक बंजर भूमि को वन भूमि का दर्जा प्रदान किया जो लकड़ी माफिया के लिए घर थी।
एक स्वयंसेवक कहता है,बाबा सबलदास वन, ग्राम पंचायत बरसीपार, विकास खण्ड सलेमपुर, जनपद देवरिया उत्तर प्रदेश मे स्थित है। यह वन लगभग साढ़े चार हेक्टेयर भू-भाग मे स्थित है।यह वन पहले सरकारी कागजात मे बन्जर के खाते मे दर्ज था जिसका लाभ उठाकर ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान वन के पेड़ो को कटवाकर बेचकर आर्थिक लाभ प्राप्त करते थे जिसके कारण वन का अस्तित्व खतरे मे आ गया। हमने इसकी शिकायत तत्कालीन कमिश्नर गोरखपुर जे पी गुप्त से किया।जिस पर श्री गुप्ता ने वन को संरक्षित करने के लिए जिलाधिकारी देवरिया को पत्र लिखा।तत्कालीन उपजिलाधिकारी सलेमपुर त्रिभुवन विश्वकर्मा ने बन्जर का इन्द्राज निरस्त कर जंगल दर्ज करने का आदेश दिया। तत्कालीन सपा सरकार के विधायक मनबोध प्रसाद तथा तत्कालीन ग्राम प्रधान व पूर्व प्रधान जानकारी होने पर काफी क्रोधित हुए तधा तत्कालीन उपजिलाधिकारी पर दबाव बनाकर उक्त आदेश वापस करा दिये।
अब यह जंगल सरकारी कागजात मे वन दर्ज है तथा इसकी सुरक्षा वन विभाग कर रहा है।इस वन के मध्य मे बाबा सबलदास की समाधि तथा शंकर जी व हनुमान जी का मन्दिर है।वन के पास ही एक 60किमी0लम्बा सरोवर है।वन के अन्दर एक पुराना कूआ है।तत्कालीन जिलाधिकारी अमितकिशोर द्वारा वन तक जाने के लिए पिच मार्ग लगभग 64लाख रूपये की लागत से बनवाया गया।इसको पर्यटन क्षेत्र के रूप मे विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
सभी स्वयंसेवकों को उनके अंतहीन प्रयासों के लिए नमन।
