गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव (Doldha Nursery) के अधिकतर लोग आदिवासी हैं। यहाँ के लोग अच्छे से खेती नहीं कर पाने के कारण खराब अर्थव्यवस्था का शिकार हो रहे थे। धीरे धीरे गांव में पलायन की शुरुआत भी हो गई थी।
गांव की इस हालत को देख, साल 1991-1992 में गांव के एक टीचर अमृतभाई पटेल ने लोगों को बिज़नेस (Nursery Business Idea) की एक ऐसी राह दिखाई कि अब गांव वालों को कहीं जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, बल्कि शहरों से लोग खुद गांव आकर यहां से पौधे खरीदते हैं।
दरअसल, अमृत पटेल एक पर्यावरण प्रेमी थे, उन्होंने अपने शौक के कारण नौकरी करने के साथ-साथ कुछ पौधे बेचना शुरू किया था। धीरे-धीरे उनका यह काम इतना चलने लगा कि उन्होंने करीब दो साल बाद, नौकरी छोड़कर पूरा ध्यान नर्सरी बिज़नेस (Doldha Nursery) पर लगाने का फैसला किया। उस समय गांव में कोई भी नर्सरी नहीं थी। उनकी बनाई नर्सरी आज उनकी बेटी बीना पटेल अपने पति नरेंद्र ठाकुर के साथ मिलकर चला रही हैं।
अमृतभाई के बिज़नेस को देखकर गांव के कई और लोगों ने भी प्रेरणा ली और खेती के साथ नर्सरी की शुरुआत की। साल 1997 तक गांव में कई और नर्सरी खुल गईं। उन्होंने ही गांव के लोगों को नर्सरी बिज़नेस चलाने की ट्रेनिंग भी दी।
आज गांव में छोटी-बड़ी करीब 200 नर्सरियां (Doldha Nursery) हैं। वहीं, गांव की पूरी आबादी का 80 प्रतिशत भाग यही काम कर रहा है।
गांव की मिट्टी काफी उपजाऊ है। साथ ही यहां का वातावरण भी पौधे उगाने के लिए काफी अच्छा है। गांव जंगल इलाके में पड़ता है और गांव का पानी भी काफी मीठा है। यही कारण है कि यहां की नर्सरी के पौधे लोगों को काफी पसंद आते है।
यहां के पौधों के साथ लॉन की घास भी काफी बिकती है। गांववाले, गार्डन के लॉन की घास बनाते हैं और इसे मिट्टी के साथ पैक करके बेचते हैं। बड़े-बड़े ऑफिस और घरों में लोग इस तरह की घास लगवाते हैं। ये काफी अच्छी कीमत पर बिकती हैं।
यहां से पौधे, गुजरात के कई शहरों, दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी जाते हैं। दोलधा गांव (Doldha Nursery Village) में 1500 से ज्यादा पौधों की किस्में मिलती हैं।गांव के लोग नर्सरी से जुड़कर काफी समृद्ध भी हुए हैं।
दोलधा गांव ने यह उदाहरण दिया कि पलायन हमेशा गांव से शहर की ओर नहीं शहर से गांव की ओर भी हो सकता है आज शहर के लोग गांव की तरफ आ रहे हैं पौधों की 1500 से ज्यादा किस्मों को खरीदने के लिए ।
