अब आँगन में नहीं आती गौरेया

कृष्ण गोपाल वैष्णव, जोधपुर।

ओ री गौरैया क्‍यों नहीं गाती अब तुम मौसम के गीत,
क्‍यों नहीं फुदकती मेरे घर-आंगन में,
क्‍यों नहीं करती शोर झुंड के झुंड बैठ बाजू वाले पीपल की डाल पर।
ओ री चराई पाखी, कहॉं गुम गई तेरी चीं-चीं,
क्‍यों नहीं चुगती अब तू इन हाथों से दाना,
क्‍यों नहीं गाती भोर में तू अपना गाना,
ओ री मेरी गौरैया रूठ न जाना, खो न जाना, आओ न
मेरे आंगन वाले आइने पर अपनी शक्‍ल देख, फि‍र से चोंच लड़ाना
मेरे बच्‍चों को भी सि‍खा देना संग-संग चहचहाना।” (अज्ञात)

आज 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस है। गौरैया (वैज्ञानिक नाम: पासर डोमेस्टिकस) एक घरेलू पक्षी है जिसे ‘पासेराडेई’ परिवार का माना जाता है। इसकी लंबाई 14 सेंटीमीटर से 16 सेंटीमीटर तक होती है तथा इसका सामान्य वजन 25g से 30 – 32 ग्राम तक हो सकता है।
पक्षी वैज्ञानिकों की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या में लगभग 60 से 80 प्रतिशत कमी देखने को मिली है ऐसे में अगर गोरिया पक्षी का संरक्षण नहीं किया गया तो यह भविष्य में एक इतिहास का पक्षी बनकर रह जाएगा। वर्ष 2010 में नेचर फॉरएवर सोसायटी (भारत) एवं इको-सिस एक्शन फाउंडेशन (फ़्रांस) के सहयोग से 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस  के रूप में जाना गया। इसका मुख्य उद्देश्य गौरैया पक्षी का संरक्षण करना और इन्हें लुप्त होने से बचाना है। 20 मार्च 2011 को पर्यावरण एवं गौरैया संरक्षण के कार्य में सहायता करने वालों को सम्मानित करने के लिए NFS द्वारा गुजरात के अहमदाबाद में ‘गौरैया पुरस्कार’ की भी शुरुआत की गई। इसका मुख्य उद्देश्य ऐसे लोगों को प्रोत्साहित  करना है जो पर्यावरण और गौरैया संरक्षण में अपना योगदान दे रहे हैं।
ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स द्वारा विश्व के विभिन्न हिस्सों के अनुसंधान और भारत समेत कई बड़े देशों के अध्ययन के आधार पर गौरैया पक्षी को Red List किया जा चुका है। जिसका अर्थ यह है कि यह पक्षी पूरी तरह से लुप्त होने की कगार पर है।
धरती से किसी भी पक्षी या जीव-जंतु का लुप्त होना भोजन श्रृंखला पर भी बड़ा असर डालता है, ऐसे में किसी एक पक्षी या जीव के लुप्त होने से मानव जीवन के साथ ही पृथ्वी पर भी गहरा संकट मंडरा सकता है जिसे उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए। गौरेया के लुप्त होने का मुख्य कारण मोबाइल टॉवर के रेडिएशन, घटते वनों से प्राकृतिक आवास की कमी, प्रदूषण, भोजन-पानी की अनुपलब्धता आदि है। हमें प्रयास करके सार्वजनिक स्थान, उद्यान, अस्पताल, सरकारी कार्यालय, वनविभाग की भूमि आदि पर अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए ताकि पक्षियों को प्राकृतिक एवं सुरक्षित आवास मिल सके। वृक्षों पर परिंडे एवं चुग्गा घर लगाने से भोजन पानी की समस्या का समाधान हो सकेगा।

 

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